Ridima Hotwani

Add To collaction

लेखनी प्रतियोगिता -06-Feb-2022

लेखनी दैनिक कहानी प्रतियोगिता।

विषय: ओपन(मुक्त)

शीर्षक:: महकता ज़हर।


   
  नन्हीं रावी अपने हाथों में मोंगरे के फूलों की माला,लिये हुए,, उनकी महकती खुशबू लिये जा रही थीं। और उसके मुख पर आनंद की मदमाती अनुभूति झलक रही थी।
     वो आते जाते हर व्यक्ति से कह रही थी
       ओ साहब जी,,
             यह गजरा ले लीजिए,, मैडम के बालों में खूब जचेगा। 
       कुछ लोग रुक कर देखते और कुछ खरीद भी रहे थे,,
आज मार्केट में रोज से ज्यादा ही चहल-पहल थी,,, और हो भी क्यों ना,, आज छुट्टी का इतवार का दिन जो था,,
इतवार के दिन मार्केट में पैर रखने तक की जगह नहीं हुआ करती थी।
        एक लंबी चौड़ी,,आंटी,, अपनी दो बच्चियों के साथ वहां से गुजर रही थीं,, रावी उन बच्चियों को गजरा दिखा कर कहने लगी,, ले लो,, बहुत सुंदर लगोगी।
    दोनों बच्चियां अपनी मम्मी से कहने लगी मम्मी मम्मी गजरा चाहिए,,
       तो आंटी जी,, रावी देखते हुए कहती हैं,, बच्चियों को गजरा दिखा दिया है ,, अब लिये बिना मानेंगी थोड़ी ना,,
अच्छा कैसे दे रही हो??
      रावी एक 50  र• का दो 90रु• के
        आंटी जी चल दे दे पर 80 रु• दूंगी।
   रावी,, अन्दर थडोढी में झांकती हुई,, मां अस्सी मां दो बोल रई।
     मां चल दे दे।
        तभी एक युगल वहां से निकल रहा था तो,, रमणी सी युवती,, शरारत भरी नजरों से,,अपने प्रियवर से इशारा करते  हुए,, दिला दो।
        रावी देखकर तुरंत,, ले लो,, ले लो,, मैडम जी,, आपके बालों पर बहुत खूबसूरत लगेगा।
    वो रमणीय हंसती हुई,, अरे-अरे ये तो तेरे बालों पर भी खूब फबेगा।
     रावी मुस्कुराती हुई,, दीदी,, भाये तो मुझे भी बहुत है,
पर मां,, लगाने नहीं देती।
    रमणी,, अरे लगा लें आज,, रुपया मैं भर रही हूं ना,,
जी खुश कर लें, तू भी।
    नहीं दीदी मां नहीं लगाने देगी।
       रमणी आश्चर्य से पैसे मैं दे रही हूं फिर भी।
  तभी रावी का भाई अन्दर से आता है और बोलता है,,
दीदी ,, मां कहती हैं कि,, ये फूलों की खुशबू हमारे लिए नहीं है,, हम तो बस इन्हें बेचने के लिए ही बने हैं।
        रमणी वह उसका प्रियवर,, अरे तुम तीन ग़ज़रे निकालों,,  एक हमें दे दो,, दो तुम रखो,, मैं तुम्हें 150 रु• देता हूं।
    रावी ना -ना दीदी
       रावी का भाई ,, दीदी,, मां को भी गजरा व उसकी महक बहुत पसंद थी,, मां बापू से कहती,, इतने गजरे बेचते हो,, कभी एक गजरा मेरे बालों में भी सजा दो,, बापू बोला कल।।
   दूसरे ही दिन,, मंडी से गजरों से भरा हुआ थैला बाइक पर लाते हुए,, पीछे से आ रहे,, ट्रोले ने बापू की बाइक को टक्कर मारी थी,, तब से बापू,, कटी टांग लेके,, बिस्तर पे पड़ा है।
     मां कहती है,, हम अभागे केवल,, गजरे बेच सकते हैं,, हमारी मजबूरी है,,,
            और इनकी महक हमारे जीवन का जहर।।
रमणी की आंखें छलछला जाती हैं।।
    वो एक गजरा लेके,,, 150 रु• रखकर
दोनों,, युगल वहां से तुरंत बिना कुछ कहे निकल जाते हैं।।
       
धन्यवाद 🙏
रिदिमा होतवानी 🌹❤️

      

       प्रतियोगिता ( कहानी)  हेतु मेरी प्रविष्टी 🙏

   7
2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

06-Feb-2022 11:34 PM

बहुत खूबसूरत कहानी है

Reply

Ridima Hotwani

07-Feb-2022 12:29 PM

दिल से आभार आपका 💐🙏

Reply